महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में संसद में कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार द्वारा लागू हुआ। इसके अंतर्गत सरकार द्वारा एक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिन का रोजगार लेने का अधिकार मिला और आज यह योजना या अधिनियम दुनिया में सबसे अधिक रोजगार सृजन करने वाली योजना है जो कि दुनिया में एक उदहारण है ।

कैसे काम करती है मनरेगा योजना:
मनरेगा कानून मांग के आधार पर काम करता है । अगर कोई ग्रामीण परिवार का वयस्क जिसकी उम्र 18 साल से ऊपर है और वह मनरेगा में अकुशल मजदूरी करना चाहता है तो वह अपने गांव की पंचायत से या खंड पंचायत विकास अधिकारी से या फिर जिला उपायुक्त से अपने गांव में 100 दिन का रोजगार मांग सकता है। यदि उसे 15 दिन में सरकार रोजगार नहीं दिला सकती तो वह बेरोजगारी भत्ता लेने का हकदार हो जाता है। उसे 25% मजदूरी से लेकर 100 दिन के रोजगार के बराबर मजदूरी तक का भत्ता ले सकता है। यह कानून मजदूरों की मांग के आधार पर है ही बल्कि मिलने वाले रोजगार का प्रस्ताव ग्राम सभा में वो पास भी करवा सकते हैं कि क्या काम उन्हें करना है, गांव के विकास के लिए और उन्हें रोजगार भी मिल जाय।

इसलिए जरूरी यह है की गांव में काम करने वाले मजदूरों को रोजगार की मांग के लिए प्रेरित करना चाहिए । मिलने वाले काम 260 तरह के हैं जोकि गांवों में विभिन्न विभागों के द्वारा किए जाते हैं। ग्राम पंचायत मनरेगा की प्रथम कार्यकारी विभाग है। मनरेगा का काम गांव में रहने वाले परिवार जिसका राशन कार्ड और वोटर कार्ड गांव का ही होना चाहिए। 50 मजदूरों पर एक मेट होता है जिसका चयन ग्राम सभा करती है जोकि हाजिरी लगाने और काम की पैमाईश करने का काम करता है। मनरेगा मजदूर की दिहाड़ी उस राज्य के न्यूनतम खेत मजदूर की घोषित दिहाड़ी के बराबर होती है। मनरेगा कानून में दिहाड़ी पैमाईश के आधार पर होती है।

अगर किसी भी मजदूर को काम मांगने के बावजूद काम नहीं मिलता है तो वह मजदूर बेरोजगारी भत्ते का हकदार हो जाता है काम मांगने के 15 दिनों के अंदर, हालांकि बहुत कम लोगों को बेरोजगारी भत्ता अभी तक मिला है या फिर कहें न के बराबर। लेकिन भत्ता लेने के लिए काम मांगने के 15 दिनों के बाद मजदूर को पंचायत में, या फिर बीडीपीओ के पास या फिर जिला उपायुक्त के पास एक आवेदन बेरोजगारी भत्ते का लगा सकते हैं। बेरोजगारी भत्ता मिलने का तरीका है कि यदि आपको काम मांगने के 15 दिनों के बाद 30 दिनों तक काम नहीं मिलता तो आप अपनी मजदूरी का 25% घर बैठे लेने का हकदार हैं, यदि 30 दिनों से 60 दिनों तक काम नहीं मिलता तब आप 40% मजदूरी घर बैठे लेने के हकदार हैं और अगर आपको पूरे साल काम मांगने पर नहीं मिलता तो 100 दिन के बराबर मजदूरी घर बैठे लेने के हकदार हैं। अगर 15 दिनों के अंदर काम या भत्ता नहीं मिलता तो आप मनरेगा ट्रिब्यूनल में और हाई कोर्ट में याचिका कर सकते हैं परंतु आपके पास काम की मांग का सबूत आवेदन की प्रतिलिपि के रूप में होना चाहिए। मनरेगा के संबंध में चाहे काम मांगने का हो या भत्ते के बारे में आरटीआई लगा सकते हैं बीडीपीओ (खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी) कार्यालय में।

भारत सरकार की पंचायतों को सख्त हिदायत है की जो काम पंचायतें गांव में बिना टेंडर के करवाती हैं वह काम बिना मशीन के मनरेगा मजदूरों से करवाया जाए व पंचायतों से संबंधित सभी विभागों के काम चाहे रेलवे हो, सिंचाई विभाग हो, निर्माण विभाग हो, जंगल विभाग हो इत्यादि को भी हिदायतें हैं की वे जो भी काम गांव में करवाते हैं और वे काम मनरेगा में होने वाले कामों की सूची में आते हैं तो उसे मनरेगा के मजदूरों से करवाएं। अगर नहीं करवाते तो उस विभाग पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है, इसलिए 260 कामों की सूची आपके पास होनी चाहिए। अगर उन कामों में से कोई काम मशीन से हो रहा है तो आप वह काम संबंधित विभाग में आवेदन करके रुकवा सकते हैं यदि वहां के मजदूरों ने काम की मांग कर रखी है तो। अगर फिर भी विभाग या पंचायत नहीं मानते तो मजदूर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं।