असंगठित क्षेत्र एक परिचय
भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक वृहत संख्या में असंगठित कामगारों की उपस्थिति है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा 2009-10 में किए गए सर्वे के मुताबिक देश में कुल कामगारों की संख्या लगभग 46.5 करोड़ थी, जिसमें से लगभग 2.8 करोड़ लोग संगठित और बाकी लगभग 43.7 करोड़ असंगठित कामगार थे। इन कुल असंगठित कामगारों में से लगभग 24.6 करोड़ कामगार खेती, लगभग 4.4 करोड़ लोग निर्माण कार्य एवं बाकी सर्विस सेक्टर में कार्यरत थे। 2009-10 के बाद यह संख्या अवश्य बदल गई होगी।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में
2007-8 के आर्थिक सर्वे के अनुसार भारत में कुल कामगारों की 93% संख्या स्वरोजगार एवं असंगठित कामगारों की है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने इन असंगठित कामगारों को कुल 4 कैटेगरी (पेशा के हिसाब से, रोजगार के हिसाब से, विशेष व्यथित श्रेणी एवं सर्विस कैटेगरी) में बांटा है।

(i) पेशा के हिसाब से
छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन, खेतिहर, मजदूर, हिस्सा साझा करने वाले, मछुआरे, पशुपालक, बीड़ी रोलिंग करने वाले, ईंट भट्ठों और पत्थर खदानों में लेवलिंग और पैकिंग करने वाले, निर्माण और आधारभूत संरचनाओं में कार्यरत श्रमिक, चमड़े के कारीगर, बुनकर कारीगार, नमक मजदूर, तेल मिलों आदि में कार्यरत श्रमिकों आदि को इस श्रेणी के अंतर्गत माना गया है।

(ii) स्वरोजगार के हिसाब से
संलग्न खेतिहर मजदूर, बंधुआ मजदूर, प्रवासी मजदूर, अनुबंधी और दैनिक मजदूर इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

(iii) विशेष व्यथित श्रेणी
ताड़ी बनाने वाले, सफाई कर्मी, सिर पर भार ढोने वाले, पशु चालित वाहन वाले श्रमिक इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

(iv) सर्विस कैटेगरी
घरेलू कामगार, मछुआरे और महिलाएं, नाई, सब्जी और फल विक्रेता, न्यूज पेपर विक्रेता आदि इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

इन चार श्रेणियों के अलावा एक बहुत बड़ी संख्या उन असंगठित कामगारों की भी है जो जुलाहे, हस्तशिल्प, हथकरघा, महिला दर्जी, विकलांग स्वरोजगार, रिक्शा चालक, ऑटो चालक, रेशम उत्पादक, बढ़ई, चमड़ा कारीगर, बिजली करघा कारीगर एवं शहरी गरीब हैं।